महाविद्या बगलामुखी माँ: शक्ति और मौन की देवी
प्रस्तावना
हिंदू धर्म के देवी-देवताओं में माँ बगलामुखी का स्थान अद्वितीय और प्रभावशाली है। वह दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या के रूप में पूजी जाती हैं। माँ बगलामुखी स्तंभन शक्ति (रोकने या नियंत्रित करने की क्षमता) की स्वामिनी हैं, जो शत्रुओं, नकारात्मक शक्तियों और अन्याय को परास्त करने में सहायक होती हैं। इनका स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और प्रभावशाली है, जो भक्तों को भय एवं संकट से मुक्ति दिलाता है।
बगलामुखी माँ की उत्पत्ति और पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बगलामुखी माँ की उत्पत्ति सतयुग में हुई थी। एक बार ब्रह्मांड में भयंकर तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे सारी सृष्टि नष्ट होने लगी। देवताओं ने भगवान विष्णु की आराधना की, तब भगवान विष्णु के तेज से पीतांबरा देवी (बगलामुखी) प्रकट हुईं। उन्होंने अपने दाएं हाथ से शत्रुओं की जिह्वा पकड़कर उन्हें निष्क्रिय कर दिया और बाएं हाथ से गदा से उनका विनाश किया। इस प्रकार, उन्होंने सृष्टि को संकट से बचाया।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक राक्षस मधु ने भगवान ब्रह्मा की तपस्या करके वरदान प्राप्त किया कि वह केवल एक विधवा स्त्री के हाथों ही मारा जा सकेगा। इस वरदान के अहंकार में उसने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया। तब देवताओं ने माँ बगलामुखी की आराधना की, जिन्होंने विधवा का रूप धारण करके राक्षस का वध किया।
बगलामुखी माँ का स्वरूप और प्रतीकात्मकता
माँ बगलामुखी का स्वरूप अत्यंत विशिष्ट है:
- वस्त्र एवं आभूषण: वह पीले वस्त्र धारण करती हैं, जो सिद्धि और ज्ञान का प्रतीक है।
- मुकुट एवं आभा: उनके मस्तक पर स्वर्ण मुकुट सुशोभित है और उनका पूरा शरीर तेज से दमकता है।
- आयुध (हथियार):
- दाएं हाथ में वह शत्रु की जिह्वा को पकड़कर उसे निष्क्रिय करती हैं।
- बाएं हाथ में गदा या चक्र धारण करती हैं, जो अन्याय का विनाश करता है।
- आसन: वह हल्दी के रंग के कमल पर विराजमान हैं, जो मनोवैज्ञानिक शक्ति का प्रतीक है।
प्रतीकात्मक अर्थ:
- पीला रंग: बुद्धि, विजय और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक।
- जिह्वा पकड़ना: वाणी पर नियंत्रण, झूठ और नकारात्मकता का दमन।
- गदा: अधर्म पर धर्म की विजय।
बगलामुखी माँ के प्रसिद्ध मंदिर
- श्री बगलामुखी मंदिर, नलखेड़ा (मध्य प्रदेश) – यह सबसे प्रसिद्ध मंदिर है, जहाँ माँ की स्वयंभू प्रतिमा विराजमान है।
- कांगड़ा बगलामुखी मंदिर (हिमाचल प्रदेश)
- बगलामुखी पीठ, गुजरात
- कामाख्या पीठ, असम (यहाँ भी बगलामुखी की उपासना होती है)।
बगलामुखी साधना से प्राप्त होने वाली सिद्धियाँ एवं महत्त्वपूर्ण सावधानियाँ
1. बगलामुखी साधना से प्राप्त सिद्धियाँ
माँ बगलामुखी की सिद्ध साधना से भक्त को अनेक प्रकार की अलौकिक शक्तियाँ (सिद्धियाँ) प्राप्त होती हैं। ये सिद्धियाँ निम्नलिखित हैं:
(क) वाक् सिद्धि (वाणी पर नियंत्रण)
- शत्रुओं की वाणी को स्तंभित करने की क्षमता।
- किसी भी वाद-विवाद, कोर्ट-कचहरी या प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करना।
- मंत्र-जाप से अन्य लोगों के विचारों को प्रभावित करना।
(ख) शत्रु नियंत्रण एवं भय मुक्ति
- शत्रुओं के मन में भय उत्पन्न करना या उन्हें परास्त करना।
- काला जादू, टोना-टोटका और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव समाप्त करना।
(ग) धन, यश और राजनीतिक सफलता
- राजनीति, व्यापार या किसी भी क्षेत्र में सत्ता प्राप्त करना।
- धन-संपत्ति की प्राप्ति एवं आर्थिक संकटों से मुक्ति।
(घ) अलौकिक शक्तियाँ (दिव्य सिद्धियाँ)
- परकाया प्रवेश: दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की क्षमता।
- स्तंभन विद्या: किसी व्यक्ति, पशु या वाहन को एक स्थान पर रोक देना।
- वशीकरण शक्ति: किसी को अपने वश में करने की क्षमता।
2. साधना में सावधानियाँ एवं आवश्यक निर्देश
बगलामुखी साधना अत्यंत प्रभावशाली है, परंतु इसे गुरु-मार्गदर्शन के बिना नहीं करना चाहिए। कुछ महत्त्वपूर्ण बातें:
(क) गुरु दीक्षा का महत्व
- बगलामुखी मंत्र की सिद्धि केवल गुरु-मुख से प्राप्त मंत्र से ही संभव है।
- बिना गुरु के स्वयं मंत्र जाप करने से उल्टा प्रभाव (दुष्परिणाम) हो सकता है।
(ख) मंत्र सिद्धि की शुद्धता
- गुरु-दीक्षित मंत्र ही सिद्ध होता है, इंटरनेट या किताबों से लिया गया मंत्र निष्फल हो सकता है।
- मंत्र साधना के लिए योग्य गुरु द्वारा निर्देशित सामग्री (हवन सामग्री, यंत्र, माला) ही प्रयोग करें।
(ग) साधना में शुद्धता एवं संयम
- साधना के दौरान ब्रह्मचर्य, सात्विक आहार और मानसिक पवित्रता आवश्यक है।
- अहंकार, क्रोध या दुरुपयोग की भावना से साधना न करें, अन्यथा उल्टा प्रभाव पड़ सकता है।
3. निष्कर्ष: सिद्धि केवल गुरु-मार्गदर्शन से ही संभव
बगलामुखी साधना से अनेक चमत्कारिक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, परंतु यह साधना मात्र एक सद्गुरु की दीक्षा, उचित मंत्र और सही विधि से ही सफल होती है। बिना गुरु के निर्देश के तथा असिद्ध मंत्र एवं अशुद्ध सामग्री का प्रयोग करने का कोई लाभ नहीं, बल्कि हानि हो सकती है।
“गुरु बिन ज्ञान न होय, गुरु बिन मिलै न मोह।
गुरु बिन लागै न सिद्धि, गुरु बिन दुःख शोक।”
अतः, सच्चे गुरु की शरण लेकर ही साधना करें, अन्यथा यह केवल अंधविश्वास या व्यर्थ का प्रयास बनकर रह जाएगा।
जय माँ बगलामुखी!