Dhyan Yog Jan Jagruti Seva Sansthan

Parinay Sutra Mala / परिणय सूत्र माला

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मंत्र सिद्ध चैतन्य “परिणय सूत्र माला”:

विवाह जीवन में एक महत्वपूर्ण संस्कार है, जिसे हम संस्कार दीक्षा में पाणिग्रहण संस्कार के नाम से भी जानते हैं। संस्कार दीक्षा के जीवनक्रम में वेद व्यास ऋषि ने पाणिग्रहण संस्कार दीक्षा का वर्णन किया था । विवाह संस्कार जीवन क्रम में एक बंधन नहीं वरन मुक्ति पथ का एक पड़ाव है….
श्रृति वचन के अनुसार दो शरीर, दो मन, दो बुद्धि, दो हृदय, दो प्राण व दो आत्माओं का समन्वय करके अगाधि प्रेम के व्रत का पालन करनेवाले दंपत्ति उमा-महेश्वर के प्रेमादर्शन को धारण करना ही विवाह का सही स्वरुप है। किंतु विवाह के संबंध में उमामहेश्वर का प्रेमादर्शन स्वरुप कहीं भी देखने को नहीं मिलता। इसके संबंध में लोगों के विचार मैतक्य है।

कोई कहता है विवाह करना चाहिए, कोई कहता है नहीं करना चाहिए। करना चाहिए तो गृहस्थ का अदर्श स्वरुप, नहीं करना तो सन्यांस का आदर्श स्वरुप लोग बताते हैं। कोई विवाह कर लेता है, योग्य वर-वधु नहीं मिलते तो कहते फिरते पत्नी सुंदर नहीं है…अनपढ़ है, हठी-दंभी है, किसी को मानता नहीं। ऐसे पर्याप्त जीवन पर्यन्त मतभेद लोगों के मानस में बने रहते हैं। ऐसे और कोई भी कई मैतक्य के कारण है जैसे लड़के का बेरोजगार होना, उसकी शिक्षा और पर्याप्त दहेज की व्यवस्था का न हो पाना। ऐसी मतभेद स्थितियों में आज के समय में योग्य वर-वधू का मिल पाना एक जटिल समस्या ले चूकी है, जिसके कई अत्यंत कारण भी है। कारण या समस्याएँ चाहे कोई भी हो, हमारे मंत्र-तंत्र शास्त्रों में असंभव जैसा कोई शब्द नहीं होता। साधनाओं के माध्यम से हम प्रत्येक समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। वैवाहिक जीवन की प्रत्येक समस्याओं का निदान कर सकते हैं और शीघ्र ही परिणय सूत्र माल्य प्राप्त कर अपनी समस्याओं का निदान कर सकते हैं।

मंत्र सिद्ध चैतन्य “परिणय सूत्र माला”:

विवाह जीवन में एक महत्वपूर्ण संस्कार है, जिसे हम संस्कार दीक्षा में पाणिग्रहण संस्कार के नाम से भी जानते हैं। संस्कार दीक्षा के जीवनक्रम में वेद व्यास ऋषि ने पाणिग्रहण संस्कार दीक्षा का वर्णन किया था । विवाह संस्कार जीवन क्रम में एक बंधन नहीं वरन मुक्ति पथ का एक पड़ाव है….
श्रृति वचन के अनुसार दो शरीर, दो मन, दो बुद्धि, दो हृदय, दो प्राण व दो आत्माओं का समन्वय करके अगाधि प्रेम के व्रत का पालन करनेवाले दंपत्ति उमा-महेश्वर के प्रेमादर्शन को धारण करना ही विवाह का सही स्वरुप है। किंतु विवाह के संबंध में उमामहेश्वर का प्रेमादर्शन स्वरुप कहीं भी देखने को नहीं मिलता। इसके संबंध में लोगों के विचार मैतक्य है।

कोई कहता है विवाह करना चाहिए, कोई कहता है नहीं करना चाहिए। करना चाहिए तो गृहस्थ का अदर्श स्वरुप, नहीं करना तो सन्यांस का आदर्श स्वरुप लोग बताते हैं। कोई विवाह कर लेता है, योग्य वर-वधु नहीं मिलते तो कहते फिरते पत्नी सुंदर नहीं है…अनपढ़ है, हठी-दंभी है, किसी को मानता नहीं। ऐसे पर्याप्त जीवन पर्यन्त मतभेद लोगों के मानस में बने रहते हैं। ऐसे और कोई भी कई मैतक्य के कारण है जैसे लड़के का बेरोजगार होना, उसकी शिक्षा और पर्याप्त दहेज की व्यवस्था का न हो पाना। ऐसी मतभेद स्थितियों में आज के समय में योग्य वर-वधू का मिल पाना एक जटिल समस्या ले चूकी है, जिसके कई अत्यंत कारण भी है। कारण या समस्याएँ चाहे कोई भी हो, हमारे मंत्र-तंत्र शास्त्रों में असंभव जैसा कोई शब्द नहीं होता। साधनाओं के माध्यम से हम प्रत्येक समस्याओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। वैवाहिक जीवन की प्रत्येक समस्याओं का निदान कर सकते हैं और शीघ्र ही परिणय सूत्र माल्य प्राप्त कर अपनी समस्याओं का निदान कर सकते हैं।

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