मन्त्र सिद्ध चैतन्य “शिष्याभिषेक माला” :
गुरु के ह्रदय शिष्य का निवास ही शिष्य का अभिषेक है, स्वयं की स्थिति है, शिष्य स्वयं का परिचय है, शिष्य गुरु का गौरव है, शिष्य गुरु अभिन्न है, शिष्य जब गुरु का प्रतिरूप हो जाता है तब शिष्य के जीवन में शिष्याभिषेक होता है….
हर पल गुरु में गतिशील होना शिष्य की पूंजी है, शिष्य की संपत्ति गुरु और गुरु का स्वयं शिष्य, जब दोनों एक दुसरे के हो जाते हैं तब शिष्याभिषेक होता है और ऐसे ही शिष्य का अभिषेक गुरु अपने तन मन प्राण तत्व अर्थात शक्ति के रूप ब्रह्म स्वरूप में सिंचित हो स्वयं की सत्ता को सिष्य के द्वारा उजागर करता है, बरस पड़ता है शिष्य के जीवन में पूर्णिमा के चाँदनी की तरह और शीतलता ही शीतलता बिखेर देता है और शिष्य उस चाँदनी में नहा दिव्य देवतुल्य हो जाता है, यही शिश्याभिषेक का अर्थ है, यही श्रेष्ठता और सर्वोचता है….
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