DHYAN YOG JAN JAGRITI SEVA SANSTHAN

Sadhna Vidhan Rahasyam

50.00

गुरु शब्द स्वयं में पूर्ण है..शब्द अवर्चनीय है..गुरु में ही समस्त तीर्थ एवं देवता समाहित हैं..गुरु पूजन किसी जीव के वश की बात नहीं, किंतु जीव मात्र के कल्याण हेतु..समस्त जीवों को प्रभु से जोड़ने हेतु..समस्त जीवों को आनंद पूर्ण जीवन प्रदान करने हेतु, श्री गुरु पूजन एकमात्र उपाय है..इसलिए श्री गुरु की पूजा जगत की सर्वश्रेष्ठ पूजा है….

स्व में शांति..स्व में प्रतिष्ठा..स्व का साहचर्य..स्व का आनंद..स्व में समाहित हो स्व को प्राप्त कर पाने की एकमात्र विधि श्री गुरु पूजन ही है..जो भी सुधीजन, साधक एवं शिष्य एकनिष्ठ हो एकमात्र श्री गुरु को ही अपना इष्ट मान पूजता है, वह पाने जीवन की सभी ईच्छाओं को पूर्ण करता हुआ..सुखम समृद्धि एवं शांति प्राप्त करता हुआ..लोक-परलोक संवारता हुआ..पूर्ण आनंद में प्रतिष्ठित हो जाता है…

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